ओबीसी को मीडिया की जरूरत – महेंद्र नारायण सिंह यादव

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वर्तमान समय मीडिया और सूचना क्रांति का युग है, और ऐसे में अपने पास खुद का सशक्त मीडिया न होना ओबीसी समुदाय की सबसे बड़ी कमी है। यह स्थापित तथ्य है कि मौजूदा बड़े टीवी चैनलों और अखबारों में ओबीसी का प्रतिनिधित्व बेहद कम है, और भविष्य में भी इस स्थिति में सुधार की कोई संभावना नहीं दिखती।
मीडिया में मौजूद ओबीसी समुदाय के लोगों के बीच ही नहीं, उद्योगपतियों और राजनेताओं के बीच भी यह बात गंभीरता से उठने लगी है कि उन्हें अपने समुदाय के हितों की रक्षा के लिए ओबीसी मीडिया की जरूरत है। इसके लिए छोटे-छोटे स्तर पर प्रयास होने भी लगे हैं, जिसे अगर संपन्न ओबीसी तबका सहयोग दे तो ये सफल हो सकते हैं, और बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
महाराष्ट्र में बेरार टाइम्स जैसे अखबारों ने ओबीसी चेतना और हितों के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है, लेकिन इस तरह का उदाहरण उत्तर भारत में ज्यादा देखने को नहीं मिलते। उत्तर भारत में ज्यादा कार्य न्यूज़ वेबसाइट्स और पोर्टल्स के जरिए किया जा रहा है, लेकिन अभी ये शुरुआती स्तर पर ही है।
नेशनल जनमत, मध्यमार्ग, टेढ़ी उंगली, वॉइस ऑफ नेशन, न्यूज़लाइव२४ जैसी वेबसाइट और यू ट्यूब चैनल धीरे-धीरे स्थापित हो रहे हैं। इन पर ओबीसी समुदाय की खबरें प्रमुखता से आने लगी हैं जिसका असर अब बड़े चैनलों और अखबारों पर भी पड़ने लगा है। इन पोर्टल्स पर दिखाई जाने वाली खबरें अब बड़े अखबार और चैनल भी लेने पर मजबूर हो गए हैं क्योंकि ऐसा न करेंगे तो उनके व्यावसायिक हित प्रभावित होंगे।
हालाँकि ये अभी पर्याप्त नहीं है, और ऐसे प्रयास हर इलाके और हर प्रांत में किए जाने चाहिए। हिंदी के अलावा, हर प्रांत की भाषा में ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए। अगर कई जगह ऐसे प्रयास होंगे तो ये सारे संस्थान मिलकर एक बड़े चैनल की कमी पूरी कर सकते हैं, और आपसी सहयोग के जरिए वो संसाधनों की कमी का भी निदान खोज सकते हैं।
सारे न्यूज़ वेबसाइट्स आपस में सहयोग रखें, और महत्वपूर्ण मुद्दों तथा खबरों को एक दूसरे के साथ शेयर करें, अपने संसाधनों का एक दूसरे के लिए इस्तेमाल करने दें तो बड़े चैनलों को चुनौती दी जा सकती है।
यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि मेनस्टड्ढीम मीडिया भले ही हमें महत्व न दे रहा हो, लेकिन दर्शक और पाठक वर्ग तो हमारे पास ही ज्यादा है। अगर हम उनकी अपेक्षाओं को बेहतर तरीके से पूरा करेंगे तो वो स्वाभाविक ढंग से हमारी ओर आकर्षित होंगे ही।
वर्तमान में यूट्यूब चैनलों का भी ज़ोर बढ़ रहा है। अभी तक ओबीसी समुदाय ने यूट्यूब चैनलों के महत्व को ढंग से समझा ही नहीं है, जबकि ये आर्थिक रूप से मजबूती देने में भी सक्षम हैं, और इनके जरिए अपनी बात तथा अपनी खबरें ज्यादा प्रभावी ढंग से समझाई जा सकती हैं।
वेबसाइट्स और यूट्यूब चैनलों की खूबी ये है कि इनमें दर्शक बाद में भी कभी अपनी मनपसंद खबर देख सकते हैं। शुरुआती सफलता और स्थायित्व के बाद ये चैनल इंटरनेट के लाइव चैनलों का रूप भी ले सकते हैं जिसके बाद इनके बड़े चैनल के रूप में स्थापित होने का रास्ता खुल जाता है।
जरूरत ये है कि तगड़ी व्यावसायिक स्पर्धा के दौर में इस काम में आर्थिक रूप से संपन्न ओबीसी लोग सहयोग दें ताकि उनके पास संसाधनों की कमी न हो, और वो अपने कर्मचारियों को भी बेहतर सुविधाएँ मुहैया करा पाएँ। अभी कम संसाधनों में ओबीसी मीडिया चलाने वाले लोगों के पास ये दिक्कत होती है कि उन्हें आजीविका के लिए कुछ दूसरा साधन अपनाना पड़ता है जिससे वो मीडिया पर पूरा ध्यान नही दे पाते। जिन ओबीसी-हितैषी मानसिकता के पत्रकारों को वो अपने यहाँ काम पर रखते हैं, उन्हें भी ढंग से वेतन नही दे पाते। ऐसे में कुछ दिनों के शुरुआती उत्साह के खत्म होने के बाद धीरे-धीरे ये सब बंद होने लगते हैं।
मौजूदा मीडिया में भी कई ओबीसी पत्रकार किसी न किसी तरह से अपना स्थान बनाए रखने में सफल तो हैं, लेकिन उनकी व्यावसायिक मजबूरी उन्हें ओबीसी हितों को महत्व न देने पर मजबूर करती है। हमें उनकी मजबूरी को भी समझने की जरूरत है, और उनकी निंदा करने का जो चलन आजकल चल निकला है, उससे बचना चाहिए, बल्कि उनसे यथासंभव सहयोग लेने की कोशिश करनी चाहिए।
अगर कई सारी वेबसाइट्स और पोर्टल ओबीसी के पास होंगे तो स्वाभाविक रूप से हमारे पास हर विषय पर लिखने वाले अच्छे ओबीसी लेखकों का एक तगड़ा पूल तैयार हो सकता है। स्थापित मीडिया के स्थापित ओबीसी पत्रकार फिर उन्हें मेनस्टड्ढीम मीडिया में जगह दिलाने में अहम भूमिका निभा भी सकते हैं।
स्वतंत्र ओबीसी मीडिया के कारण ही मेडिकल दाखिले में ऑल इंडिया कोटे में ओबीसी रिजर्वेशन केवल २ प्रतिशत तक सीमित रखे जाने की बात पुरजोर तरीके से उठाई जा सकी। बेरारटाइम्स ने इस खबर को सबसे पहले उठाया और उसके बाद नेशनल स्तर पर कई प्रमुख वेबसाइट्स ने इस मसले को विस्तार से उठाया। यही कारण है कि जब राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के पदाधिकारी स्वास्थ्य मंत्री और अन्य नेताओं से मिले तो उन्होंने उनकी बात को गंभीरता से सुना और जरूरी कार्रवाई का आश्वासन दिया। आमतौर पर कुछ गिने-चुने नेताओं को छोड़ दें, ओबीसी नेताओं को चैनलों और अखबारों में कवरेज मिलता ही नहीं है। कभी उनका जिक्र आता भी है तो नकारात्मक खबरों के मामले में ही आता है और उसका मकसद उनकी छवि खराब करना ही होता है। उनकी सकारात्मक खबरें कभी मीडिया नहीं बताता।
इस तरह से देखें तो ओबीसी मीडिया का सबसे बड़ा फायदा तो ओबीसी के राजनेताओं को ही होना है। ऐसे में ये राजनेता अपने अपने इलाकों में कुछ ओबीसी मीडिया स्थापित करने में मदद करें, और उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने दें, तो इससे बड़ा फायदा हो सकता है।

महेंद्र नारायण सिंह यादव
(स्वतंत्र पत्रकार, लेखक और संपादक, संपर्क – बी-४०८, सेकंड फ्लोर, जी डी कॉलोनी, मयूर विहार-३, दिल्ली-११००९६.
फोन- ९८९११६८४१९)