मध्यप्रदेश में स्वाइन फ्लू से 9 और मौत, सरकार की लापरवाही से बढ़ता गया

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भोपाल. प्रदेश में शनिवार को स्वाइन फ्लू से नौ और मौत हो गईं। इनमें भोपाल और जबलपुर के दो-दो, जबकि इंदौर के पांच मरीज हैं। प्रदेश में मृतकों की संख्या 81 हो गई है। राजधानी के एलबीएस हॉस्पिटल में शुक्रवार देर रात इटारसी निवासी सायरा बानो की मौत हो गई। मौत के चार घंटे पहले ही जबलपुर की लैब से उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। इसी तरह पालीवाल अस्पताल में सिरोंज निवासी नान सिंह की मृत्यु हो गई। स्वाइन फ्लू कंट्रोल रूम के अफसरों ने बताया कि भोपाल में शनिवार को तीन और पॉजिटिव मरीज मिले हैं।
स्वाइन फ्लू के मरीजों का इलाज निजी अस्पतालोें में भी किए जाने को अनुमति मिलने के बाद सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या में कमी आई है, जबकि निजी अस्पतालों में मरीज बढ़े हैं। जानकारों का मानना है कि सरकार यदि निजी अस्पतालों व नर्सिंग होम्स में ऐसे मरीजों के इलाज पर रोक नहीं लगाती तो हालात इतने नहीं बिगड़ते।
मप्र नर्सिंग होम्स एसोसिएशन स्वाइन फ्लू के बेकाबू संक्रमण के लिए स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्ण के उस निर्देश को जिम्मेदार मान रहा है, जिसमें उन्होंने निजी अस्पतालों में इलाज पर रोक लगाई थी। इससे सरकारी अस्पतालों में सभी संदिग्ध और पॉजिटिव मरीजों की भीड़ लग गई थी, जबकि वहां उनके इलाज के पर्याप्त इंतजाम और संसधान ही नहीं हैं। हालांकि अब प्रवीर कृष्ण ऐसे निर्देश जारी करने की बात से इनकार कर रहे हैं।

अफसरों ने की अनदेखी
नर्सिंग होम्स एसोसिएशन के अधिकारियों का कहना है कि शहर में स्वाइन फ्लू का संक्रमण लगातार बढ़ रहा था, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इसकी अनदेखी करते रहे। सरकार को मामले की गंभीरता का अहसास 23 जनवरी को तब हुआ, जब स्वाइन फ्लू से दो लोगों की मौत हो गई। एसोसिएशन के सदस्यों ने बताया कि शहर में जनवरी से अब तक स्वाइन फ्लू से 20 मरीजों की मौत हुई है। इनमें से 16 मरीजों की मौत 1 फरवरी के बाद हुई है। वहीं बीमारी के 118 पॉजिटिव मरीज मिले हैं।
एसोसिएशन के सदस्यों के मुताबिक जनवरी के पहले सप्ताह में स्वाइन फ्लू के संक्रमण को काबू करने सरकार ने स्टेट टास्क फोर्स की मीटिंग बुलाई थी। इसमें अफसरों ने नर्सिंग होम संचालकों को मौखिक रूप से निर्देश दिए थे कि स्वाइन फ्लू के संदिग्ध और पॉजिटिव मरीजों के लिए दवाओं की व्यवस्था स्वयं के स्तर पर करें। इससे स्वाइन फ्लू के संदिग्ध और पॉजिटिव मरीजों का इलाज खर्च बढ़ा और मरीज सरकारी अस्पतालों में डायवर्ट हो गए, जहां फ्लू ओपीडी, स्वाइन फ्लू वार्ड नहीं होने से बीमारी का संक्रमण बढ़ गया है। बीते साल तक सरकार संदिग्ध और पॉजिटिव मरीजों के लिए टैमी फ्लू दवा निजी अस्पतालों को देती थी।

डॉक्टर बीमारी नहीं पहचान पाए
शिशु रोग विशेषज्ञ एवं सेवानिवृत्त संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. एनआर भंडारी ने बताया कि सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर स्वाइन फ्लू के संक्रमण को सही समय पर पहचानने में नाकाम रहे। इसकी वजह अस्पतालों में फ्लू ओपीडी की शुरूआत डेढ़ महीने की देरी से करना है। उन्होंने बताया कि सरकार ने डाक्टरों को स्वाइन फ्लू की जांच और इलाज की ट्रेनिंग जनवरी के आखिरी सप्ताह में दी, जबकि यह ट्रेनिंग दिसंबर में ही डाक्टरों को दी जाना चाहिए थी। इन्हीं गलतियों के कारण शहर में स्वाइन फ्लू का संक्रमण बढ़ा है।
20 नए संदिग्ध मरीज मिले
स्वाइन फ्लू कंट्रोल रूम के अफसरों ने बताया कि शनिवार को शहर के अलग-अलग अस्पतालों में स्वाइन फ्लू के 20 नए संदिग्ध मरीज मिले हैं। मरीजों के सुआब के नमूने जांच के लिए आरएमआरसीटी जबलपुर भेजे गए हैं। नमूनों की जांच रिपोर्ट सोमवार को आएगी।